पश्चिम की अंधी नक़ल में हम सबसे आगे हैं। उनलोगों ने ice bucket challenge शुरू किया ,जिसमें सर पर बर्फ़ भरी बालटी उँड़ेल ली जाती है और फिर तीन लोगों को चैलेज किया जाता है। देखा देखी फ़िल्म सितारे ,क्रिकेट सितारे, रइसजादो के बेटे नक़ल करने लगे। इसका जबाब एक महिला ने बहुत अच्छा दिया ।उन्होंने rice bucket challenge शुरू किया ,इसमें एक बालटी चावल दान किया जाता है और बदलें में तीन बालटी चावल देना होता है। यह है भारतीय संस्कार ।
बतकही
बात कहानी गप्प
Thursday, August 28, 2014
Tuesday, August 6, 2013
उपवास। ।हर व्रत त्यौहार में हम उपवास रखते हैं। कभी खाकर,कभी निर्जल /परन्तु उपवास मात्र भूखे रहना नहीं है -उप का अर्थ है निकट जैसे उपनगर, उपस्थित ,उपवास का मतलब है निकट में वास करना किसके निकट? प्रभु के निकट ,खुद के निकट अगर उपवास रखते हुए भी हम दिन दुनिया में फंसे रहें तो ये सब बेमानी है। उपवास रखने की प्रथा के पीछे एक सत्य और है की भूख और प्यास का एहसास हर किसी को हों /तभी तो हम जान पाएंगे की भूखे लोग कैसे रहते हैं। । रोजा में भी यही लागु होता है,लेकिन हम असली उपवास कहाँ करते हैं। …… शाम में सारा कसर निकाल लेते हैं और ,रबरी,खीर ,फल ,शरबत के नाम पर चारगुना ज्यादा खा लेते हैं
Wednesday, August 10, 2011
aaj ke ads
aajkal aa rahe do teen vigyapan bahut nimn star aur ghatiya vichar ke hain.jaise greenlam ply wale ek budhe vyakti ko marte dikhate hain,wo coffin mein letne ko bechain hai.dusra idea walon ka hai...abhishek ko filmon mein kaam nahin mil raha hai to idea ko pakde huye hai...abadi badhne ka karan bijli nahin hona aur 3g nahin hona batana sic!
Tuesday, June 22, 2010
पित्री दिवस
यह पश्चिम देशवासियों का फितूर है की उन्होंने हर व्यक्ति और हर मौके के लिए एक दिन मुक़र्रर कर रखा है ..जैसे पिताओं के लिए fathers डे ,माँ के लिए mothers डे ,प्रेमिकायों पत्नियों के लिए vallentine डे ,फिर earth डे,फलां डे ढेकना डे और हम भारतीय हर उस परंपरा को भूल कर जो सदियों से हमारे यहं चली आ रही हैं ,उसे न मान कर विदेशियों की कॉपी करने मे माहिर हैं .हम पिताओं के कन्धों पर झूलने से लेकर उन्हें कन्धा देने तक सम्मान देते हैं लेकिन २० जून को पिता दिवस मनाने की आपाधापी हमारे यहाँ भी दिखी.अख़बारों में पिता को गिफ्ट देने के विज्ञापन भरे थे ,ओल्ड age होम में फल बांटे गए .लोगों ने अपने पिताओं के संस्मरण अख़बारों मे छपाए ,फ़िल्मी कलाकारों ने अपने अपने पिताओं का गुणगान किया ,इसी बहाने अपना मुफ्त में प्रचार भी कराया .कुछ राजनेताओं ने अपने पूज्य पिताजी का गुणगान किया.यह अंधी नक़ल की दौड़ हमें कहाँ ले जा रही है .अमेरिका में बेटा १६ साल का होता है तो वो अपने माँ बाप से अलग रहने लगता है कमाने लगता है ,ये वहां की तहज़ीब है ..हमारे यहाँ बेटा जवान होने तक बाप पर आश्रित रहता है फिर बाप ही उसकी शादी करता है ,उसे पढ़ाने से लेकर उसे settle करने तक की, उसका घर बसाने की सारी जदोजहद ,उसके बच्चे की देखभाल ,सब कुछ बिना किसी मतलब के करता है .बाप बस येही आशा करता है की जब उसके पैर थक जाएँ ,वो निशक्त हो जाये ,तो पोते की उंगलियाँ पकड़ कर वोह दौड़ लगाये .हमारे यहाँ मान्यता है की दादा का पुनर्जनम पोते के रूप में होता है .फिर एक और आहै की बेटा उसका अंतिम संस्कार करे ताकि उसकी आत्मा को शांति मिल सके ।हमारा जनम मरण का सम्बन्ध है फिर हम fathers डे क्यों मनाएं?
Saturday, October 3, 2009
Saturday, September 19, 2009
सबक
जब सब कुछ ठीक चलता है तो लगता है येही सच है .सुख सम्पदा ,गाड़ी घोड़ा, पॉवर पोस्ट, पैसा कौडी इसी में मन रम जाता है .धीरे धीरे नहीं चाहते हुए भी अंहकार होने लगता है .दया ,सहानुभूति, मदद ,दान , पूजा पाठ ,ध्यान ,चिंतन मनन के लिए समय नहीं मिलता है ,रिश्ते नाते गुम होने लगते हैं ,गाँव घर बेगाना हो जाता है आदमी formal हो जाता है .बस आगे बढ़ने, और पाने की ललक में अंधी दौड़ शुरू हो जाती है की ...अचानक एक ठोकर लगती है और होश उड़ जाता है .जमीं पर गिरते ही पता चलता है की हम तो कुछ हैं ही नही .कोठी बंगला स्टाफ पिली बत्ती सब मृगतृष्णा है .सच है सिर्फ़ प्यार,इज्जत,ध्यान,पूजा .और फिर हाथ जोड़े भगवान के आगे गिडगिडाते हैं ..माफ़ कर दो प्रभु ...वो तो दयालु है ..माफ़ कर देगा लेकिन क्या हम कुछ सबक लेगें ,कुछ सीखेंगे ?
नवरात्री
आज से नवरात्र शुरू है। माँ जगदम्बे भवानी की आराधना । अकेले पूजा करना पड़ रहा है ,कारण क्या है ?इस बार माँ हमारी परीक्षा ले रही हैं .जो इस घर में उनका सबसे परम भक्त है उसे डॉक्टर के हवाले कर दिया .बंगलोर में वो हॉस्पिटल के चक्कर लगा रही है .डॉक्टर तो सिर्फ़ इलाज करेगा ठीक तो तुम्ही करोगी माँ.फिर अपने बच्चों से कोई नाराज़ होता है .कोई भूल चुक हुई मानते हैं ,तुमने इतना सब कुछ दे दिया की उसे सँभालने में ही हम व्यस्त हो गए तुम्हारी पूजा में मन नही लगने लगा लेकिन कुपुत्र तो होता है कुमाता कहाँ होती है .क्षमा करो अपराध मां हम तुम्हारे शरण में हैं .मां ठीकठाक कर दो मां .............
Tuesday, June 30, 2009
वोह दिन
तो क्या हुआ १३ फ़रवरी को ?दिन उसी तरह शुरू हुआ ,सुधांशु जी और बाबा रामदेव के प्रवचन से ,आसन चाय और फिर चाय स्नान पूजा नास्ता ,पेपर ,,टीवी पर स्टॉक का हाल मगर पिताजी उसी तरह सोये रहे बिच बिच में आँख खोल कर देखना फिर सो जाना.किसी तरह एक कप चाय पिए फ़िर सो गए ,ऑफिस जाने का मन नहीं कर रहा था फिर भी एकाध घंटे के लिए गया और लौट के चला आया वे उसी तरह सोते मिले .साँस तेज तेज आवाज के साथ सीना ऊपर निचे हो रहा था .बहुत मुस्किल से उठ कर बैठे खाने के लिए पूछने पर हलके से मना कर दिया .और फिर सो गए .डॉक्टर से पूछा तो उसने कहा नींद की गोली का असर है शाम तक नोर्मल होंगे .शाम में चाय नमकीन लेकर गया उठे ,देखा ,मुस्कुराये ,फिर पानी माँगा पानी लाने अन्दर गया लौटा तो फिर सोगये थे .थोड़ा गुस्सा भी आगया झटके से उठाना चाह तो लुढ़क गए चेहरा एकदम शांत लग रहा था .....वे निकल चुके थे अनंत यात्रा पर .................................
जब आदमी जिन्दा रहता है तो सिर्फ़ उसकी खामियां नज़र आती हैं .और अगर वो बीमार है तबतो उसकी हर बात बुरी लगेगी.उसका उठना बैठना ,उसका खांसना ,उसका बाथरूम जाना उसका कुछ खास चीज खाने का मन करना ...सब भारी नुकसानदेह और थका देने वाला लगेगा .बाप बेटे का रिश्ता रोगी और इलाज कराने वाले का बन कर रह जाता है.बात चीत सिर्फ़ यही होता है ........नींद आयी ? भूख कैसा है ?latrine हुआ?कल हॉस्पिटल जाना है ,दवा भी ख़तम होगया है ,पैर खींचता है ,हाँथ काँपता है ,वगैरह -२ ,बाप कुछ और बात करना चाहता है ,घर परिवार की बातें ,गाँव देहात की बातें ,बीते दिनों की बातें .लेकिन किसके पास इतना समय है ,अभी नया फ्लैट लेने की चर्चा करनी है wife से ,बेटे को नया लैपटॉप देना है उससे राय लेनी है ,बेटी को नयी मूवी दिखाना है दोस्तों को डिनर पर बुलाना है ...कितना काम है अब इनसे फुर्सत मिले तब तो उस बुढे बीमार बाप की सुने जो जिए ही जा रहा है .फिर एक दिन वोः सरीर त्याग देता है ...मर तो बहुत पहले गया था आज बस औपचारिकता पुरी की है .फिर अचानक उसके प्रति न जाने कहाँ से प्यार उमड़ आता है तीर्थ स्थल में दाह संस्कार ,चंदन की लकड़ी और घी ,सिल्क का कफ़न ,फुल माला ,बैंड बाजा,और फिर १३ दिन तक चलने वाला क्रिया -कर्म .कार्ड .निमंत्रण ,पंडित गरुड़ पुराण सात मिठाइयां ,दरिद्र भोज ,वस्त्र दान ,महोत्सव महाभोज ,मुंडन ....अब ये मृतात्मा की शान्ति के लिए है की उससे सदा सदा के लिए पिंड छूटने की खुशी में है ...यह पता नहीं ....................................
Monday, June 29, 2009
pitaji
पिताजी एक लिंक थे .कम से कम उनके बहाने बबलू बराबर फ़ोन करता था ,दीदी भी कभी कभार मिलने चली आती थी घर से भी कुछ लोग आ जाते थे नित्या भी एकाध बार आया था परन्तु उनके जाते ही जैसे सब कुछ ख़तम हो गया .रोज रोज अस्पताल जाने का झमेला समाप्त ,फ़ोन करने का ,आने जाने का ,हालचाल पूछने का मामला ख़तम दवा का इलाज का खर्चा बचा अब सब लोग चैन से हैं .पिता जी ने मरने के बाद भी लोगों का भला ही किया
Tuesday, June 16, 2009
जाने चले जाते हैं कहाँ
चार महीने गुजर गए परन्तु मानो कल ही की बात है.वही रांची का ७०, न्यूए.जीकालोनी का मकान.बाहर का कमरा जो ड्राइंग रूम और पिताजी के बेड रूम दोनों के रूप में use हो रहा था पिताजी करीब २ -२.५ साल से इसी कमरे में रह रहे थे बिच में अन्दर के कमरे में थे फिर बाहर आए और अंत तक वहीँ रहे .इस साल की शुरुआत अच्छी थी। january में हमलोग पुरी गए ,भगवन जगन्नाथ के दर्शन और समुद्र तट की सैर की .फिर २५ जनवरी को गया और खुटेहरा लौटते समय मनोकामना में पनीर पकौरा खाते समय पिताजी बहुत खुश थे. परन्तु ६ फ़रवरी से चुप रहने लगे उठने बैठने में हांफने लगते थे .भूख एकदम ख़तम उनकी सबसे पसंदीदा चीज चाय भी उन्हें अच्छी नहीं लग रही थी .वैसे भी बात चित नहीं के बराबर होती थी ज्यादातर समय सोये ही रहते थे लेकिन तीन दिन से भारी बेचैनी और नींद नहीं आने से परेशान थे .फिर इलाज शुरू हुआ dialysis खून चढाना लेकिन situation में सुधार नहीं हुआ और देखते देखते १३ फ़रवरी आ गया ............................................
Monday, December 15, 2008
सर्दियाँ
इस साल भारी बरसात ने जो तबाही मचाई उससे लग रहा था की जबरदस्त ठण्ड पड़ेगा .लेकिन १५ दिसम्बर को भी २८ डिग्री तापमान है ,गर्मी का एहसास है .यह पर्यावरण असंतुलन का एक नमूना है .आखिर ऐसा क्यों ?सारे ग्लेशियर पिघल रहे हैं .गंगोत्री यमनोत्री से गंगा जमना की धारा सूक्ष्म और पतली हो गयी है .नदियों में वो प्रवाह नही है .जो पर्यटक गंगोत्री या जमनोत्री जा रहे हैं वे इतना कूड़ा कचरा छोड़ के आ रहे हैं की सारे पहाड़ गन्दगी की ढेर बनते जा रहे हैं .यही हाल ऋषिकेश हरिद्वार का भी है .मसूरी ,नैनीताल ,शिमला ...जहाँ भी जायेंगे लोगों का हुजूम गाड़ियों की कतार धुआं शोर हंगामा ..ऐसे में क्या सर्दियाँ ,क्या पहाड़ क्या मौसम के मज़े ?अब भी नही चेते तो एक दिन सब ख़तम हो जाएगा ..क्या पर्यटन से होने वाली आय के कारन हम इन खुबसूरत पहाडों को बर्बाद कर देंगे ...पहाडों पर डीजल चालित गाडियां बंद कर दी जायें ,पैदल चलने की आदत को प्रोत्साहित करें .बैटरी की गाडियां चलें बहुमंजिलीं इमारतें पहाडों पर नहीं बने .पर्यटक गाँव में ठहरें .तभी प्रकृति का सौन्दर्य बना रहेगा
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