यह पश्चिम देशवासियों का फितूर है की उन्होंने हर व्यक्ति और हर मौके के लिए एक दिन मुक़र्रर कर रखा है ..जैसे पिताओं के लिए fathers डे ,माँ के लिए mothers डे ,प्रेमिकायों पत्नियों के लिए vallentine डे ,फिर earth डे,फलां डे ढेकना डे और हम भारतीय हर उस परंपरा को भूल कर जो सदियों से हमारे यहं चली आ रही हैं ,उसे न मान कर विदेशियों की कॉपी करने मे माहिर हैं .हम पिताओं के कन्धों पर झूलने से लेकर उन्हें कन्धा देने तक सम्मान देते हैं लेकिन २० जून को पिता दिवस मनाने की आपाधापी हमारे यहाँ भी दिखी.अख़बारों में पिता को गिफ्ट देने के विज्ञापन भरे थे ,ओल्ड age होम में फल बांटे गए .लोगों ने अपने पिताओं के संस्मरण अख़बारों मे छपाए ,फ़िल्मी कलाकारों ने अपने अपने पिताओं का गुणगान किया ,इसी बहाने अपना मुफ्त में प्रचार भी कराया .कुछ राजनेताओं ने अपने पूज्य पिताजी का गुणगान किया.यह अंधी नक़ल की दौड़ हमें कहाँ ले जा रही है .अमेरिका में बेटा १६ साल का होता है तो वो अपने माँ बाप से अलग रहने लगता है कमाने लगता है ,ये वहां की तहज़ीब है ..हमारे यहाँ बेटा जवान होने तक बाप पर आश्रित रहता है फिर बाप ही उसकी शादी करता है ,उसे पढ़ाने से लेकर उसे settle करने तक की, उसका घर बसाने की सारी जदोजहद ,उसके बच्चे की देखभाल ,सब कुछ बिना किसी मतलब के करता है .बाप बस येही आशा करता है की जब उसके पैर थक जाएँ ,वो निशक्त हो जाये ,तो पोते की उंगलियाँ पकड़ कर वोह दौड़ लगाये .हमारे यहाँ मान्यता है की दादा का पुनर्जनम पोते के रूप में होता है .फिर एक और आहै की बेटा उसका अंतिम संस्कार करे ताकि उसकी आत्मा को शांति मिल सके ।हमारा जनम मरण का सम्बन्ध है फिर हम fathers डे क्यों मनाएं?
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