Tuesday, June 16, 2009
जाने चले जाते हैं कहाँ
चार महीने गुजर गए परन्तु मानो कल ही की बात है.वही रांची का ७०, न्यूए.जीकालोनी का मकान.बाहर का कमरा जो ड्राइंग रूम और पिताजी के बेड रूम दोनों के रूप में use हो रहा था पिताजी करीब २ -२.५ साल से इसी कमरे में रह रहे थे बिच में अन्दर के कमरे में थे फिर बाहर आए और अंत तक वहीँ रहे .इस साल की शुरुआत अच्छी थी। january में हमलोग पुरी गए ,भगवन जगन्नाथ के दर्शन और समुद्र तट की सैर की .फिर २५ जनवरी को गया और खुटेहरा लौटते समय मनोकामना में पनीर पकौरा खाते समय पिताजी बहुत खुश थे. परन्तु ६ फ़रवरी से चुप रहने लगे उठने बैठने में हांफने लगते थे .भूख एकदम ख़तम उनकी सबसे पसंदीदा चीज चाय भी उन्हें अच्छी नहीं लग रही थी .वैसे भी बात चित नहीं के बराबर होती थी ज्यादातर समय सोये ही रहते थे लेकिन तीन दिन से भारी बेचैनी और नींद नहीं आने से परेशान थे .फिर इलाज शुरू हुआ dialysis खून चढाना लेकिन situation में सुधार नहीं हुआ और देखते देखते १३ फ़रवरी आ गया ............................................
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
S I-I /-\ I3 D.... I\I I R /-\ I\I T /-\ R
---i want to share my views
No comments:
Post a Comment