Tuesday, June 30, 2009
जब आदमी जिन्दा रहता है तो सिर्फ़ उसकी खामियां नज़र आती हैं .और अगर वो बीमार है तबतो उसकी हर बात बुरी लगेगी.उसका उठना बैठना ,उसका खांसना ,उसका बाथरूम जाना उसका कुछ खास चीज खाने का मन करना ...सब भारी नुकसानदेह और थका देने वाला लगेगा .बाप बेटे का रिश्ता रोगी और इलाज कराने वाले का बन कर रह जाता है.बात चीत सिर्फ़ यही होता है ........नींद आयी ? भूख कैसा है ?latrine हुआ?कल हॉस्पिटल जाना है ,दवा भी ख़तम होगया है ,पैर खींचता है ,हाँथ काँपता है ,वगैरह -२ ,बाप कुछ और बात करना चाहता है ,घर परिवार की बातें ,गाँव देहात की बातें ,बीते दिनों की बातें .लेकिन किसके पास इतना समय है ,अभी नया फ्लैट लेने की चर्चा करनी है wife से ,बेटे को नया लैपटॉप देना है उससे राय लेनी है ,बेटी को नयी मूवी दिखाना है दोस्तों को डिनर पर बुलाना है ...कितना काम है अब इनसे फुर्सत मिले तब तो उस बुढे बीमार बाप की सुने जो जिए ही जा रहा है .फिर एक दिन वोः सरीर त्याग देता है ...मर तो बहुत पहले गया था आज बस औपचारिकता पुरी की है .फिर अचानक उसके प्रति न जाने कहाँ से प्यार उमड़ आता है तीर्थ स्थल में दाह संस्कार ,चंदन की लकड़ी और घी ,सिल्क का कफ़न ,फुल माला ,बैंड बाजा,और फिर १३ दिन तक चलने वाला क्रिया -कर्म .कार्ड .निमंत्रण ,पंडित गरुड़ पुराण सात मिठाइयां ,दरिद्र भोज ,वस्त्र दान ,महोत्सव महाभोज ,मुंडन ....अब ये मृतात्मा की शान्ति के लिए है की उससे सदा सदा के लिए पिंड छूटने की खुशी में है ...यह पता नहीं ....................................
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